नया उजाला
संघर्ष की लौ, जल जाने दो,
मिट जाने दो, अंधियारों को
कल बीत गया, विसराने दो,
आने दो नये उजालों को।
कल से बदलेंगे हम खुद को,
कल फिर टालेगा मन इसको।
एक मिथ्या-सा छल जाएगा,
ये जाल तुम्हे भरमायेगा।
तुम चुनना सही विचारो को।
आने दो नये उजालों को।
सरल दिशाएं भायेंगी,
स्वप्नों का महल दिखाएंगी।
फूलों का भेष धरे होंगी,
मोहक श्रंगार करे होंगी।
तुम तजना उन गलियारों को
आने दो नये उजालों को।
नकली किरदार गढ़े होंगे,
शब्दो में झूठ भरे होंगे।
कथनी करनी के अंतर में,
अर्थो के भेद छुपे होंगे।
तुम सुनना हृदय पुकारों को।
आने दो नये उजालों को।
~रिया प्रहेलिका
कवियित्री परिचय:
इस कविता को रिया गुप्ता ने लिखा है। रिया पेशे से एक एच्. आर. प्रोफेशनल हैं और कवितायेँ लिखने का शौक रखती हैं। इनकी अन्य रचनाएँ भी पंचदूत में प्रकाशित हो चुकी हैं।
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